बरसा सावन
देखा नही केवल सुना था सावन भी ऐसे आता हें,
घिर घिर बद्र आते थे, बिन बरसे लोट ये जाते थे |
प्यासी धरा, प्यासी ही रह जाती थी |
मन का मयूर नाच उठने को, तडफ तडफ रह जाता था |
धरती का बेटा, नभ को देख लहू के आसू पीता था |
लेकिन अबके 'सावन' विशेस आया है |
इन्द्रदेव ने असीम प्यार बरसाया है |
धरती ने मंगल गीत गया है,
सबने सावनोत्सव खूब मनाया है |
आओ मिलकर संकल्प करे,
भूल हमे नही जाना है,
इस स्नेह - जल को व्यर्थ नही गवाना है |
संचित कर इसको मरुधरा को हर-भरा
और स्वर्ग सम बनाना है |
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