जालोर जिले के आहोर कस्बे में सिथ्त चामुंडा माताजी का मंदिर जन- जन कि आस्था का केंद्र है | यहा राजस्थान से बाहर के श्रद्धालु भी दर्शनों के लिए आते है |
सर सुंधा, धड़ कोटडा, पगला पिछोला री पाल |
आपो आप विराजो आहोर में, गले फूलो री माल ||
अर्थात माँ चामुंडा का सिर सुंधा पर्वत (भीनमाल), धड़ कोटड़ा, पैर पिसोला कि पाल पर सिथ्त है | जबकि स्वयं आहोर नगर में विराजित है | माँ चामुंडा कि कलात्मक मंदिर आहोर के अंतिम छोर पर एकांत में बना हुआ है | मंदिर कि स्थापना ४०० वर्ष पूर्व कि बताई जाती है | किवंदती है कि यहा के तत्कालीन ठाकुर को माँ चामुंडा ने स्वप्न में स्वयं के प्रकट होने कि बात बताते हुए कहा था कि मेरी प्रतिमा प्रकट होगी | उसे वहा बैलगाड़ी में रख गाजे-बाजों के साथ प्रस्थान करना और जहा बैलगाड़ी स्वत: रुक जाए वही उसे स्थापित करवा देना | इसके दुसरे ही दिन गाँव के डाकिनाडा तालाब में मिट्टी खोद रहे एक कुम्हार का फावड़ा किसी पत्थर से टकराया | उसने खुदाई कि तो माता कि मूर्ति निकली | लोगों की मान्यता है की फावड़े के प्रहार के कारण माताजी की गर्दन झुक गई जो आज भी वैसे ही है | बाद में मूर्ति को बैलगाड़ी में विराजित कर गाजे-बाजों के साथ यात्रा निकाली | वर्तमान मन्दिर के स्थान पर बैल स्वत: रुक गये तो उसे वही स्थापित कर दी गई | आज वहा भव्य मन्दिर बना हुआ है | माता की मूर्ति के आगे चांदी का विशाल सिंह स्थापित है | नवरात्रि में माँ के दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते है |
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