' मै कहता आंखिन की देखि ' की क्रांतिकारी बात कहने वाले कबीर की वाणी आज भी समाज की विषमताओ के बिच समता का संदेश देती है |
कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाटी हाथ जो घर जारै आपना चले हमारे साथ | यह बात कहने वाले कबीर आज भी उतने ही प्रांसगिक है जितने वे अपने जमाने में थे | कबीर युग पुरुष थे | युग पुरुष वही होता है जिसकी सोच युग के विपरीत होती है | इसलिए कबीर ना काहू से दोस्ती ना काहू से वैर की बात कहते है | कबीर स्वेदनशील तो है लेकिन सुकोमल नही है | वाई साँच को भी आँच पर तपा कर देखते है |
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