17 November 2010

मानुष तेरा गुन बड़ा..vv

कबीर पारख संस्थान में तीन दिनी वार्षिक महोत्सव शुरू
इलाहाबाद। मानुष तेरा गुन बड़ा, मांसु न आवै काज, कबीर के उपदेशों से आपसी सौहार्द एवं अनुशासन का पाठ पढ़ाने के उद्देश्य से कबीर पारख संस्थान का तीन दिनी वार्षिक संत सम्मेलन बुधवार से शुरू हुआ। सद्गुरु पूजन बीजक पाठ, संत समागम के लिए देश भर से आए साधकों का जमावड़ा प्रीतमनगर स्थित कबीर आश्रम परिसर में लगा। कबीर साहित्य एवं चित्र प्रदर्शनी को लोगों ने श्रद्धा पूर्वक निहारा।
कार्यक्रम का आरंभ सुबह आठ बजे कबीर साहेब के चित्र पर माल्यार्पण से हुआ। अभिलाष साहेब ने साधकों को कबीर के बताए रास्ते पर चलने का संकल्प दिलाया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा, कबीर के उपदेशों में मानव विकास का रहस्य छुपा है। वे सच्चे हृदय से पूजा करने के बजाय कर्म करने की नसीहत दी। उन्होंने मानव को तन से कर्म परायण होना और मन से आत्मपरायण होने का संदेश दिया। विश्वशांति एवं मानव कल्याण उनके बताए रास्ते पर चलकर ही संभव है। तदुपरांत बीजक पाठ हुआ। सायं भजन संध्या एवं प्रवचन हुआ। जिसमें विभिन्न प्रांतों से आए संतों ने अपने विचार व्यक्त किया। छत्तीसगढ़ से आए रामचरन ने कहा, तीन दिन में साल भर का सबक सीखने का संकल्प लेकर चला था। आश्रम में अभी रात बिताई है तमाम सांसारिक प्रपंचों से मन हटता लग रहा है।इस मौके पर देवेंद्र दास, गौरव दास, धर्मेंद्र दास समेत बड़ी संख्या में साधक श्रद्धालु मौजूद रहे।

इलाहाबाद

इलाहाबाद : यह कबीर की दुनिया है। अपनी धुन में मगन और दुनियावी रास-रंग से दूर। रविवार को प्रीतमगर के कबीर पारख संस्थान में 22 प्रांतों से आये साहेब जुटे तो 'हमन हैं इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या' की धुन मानों साकार हो उठी। हर साल की तरह ही इस बार भी साहेबों इस जमावड़े का मूल भाव 'हमारा गुरनाम सांचा है, हमन दुनिया से यारी क्या' ही रहा। कबीरपंथियों का तीन दिनी अधिवेशन रविवार को शुरू हो गया। इस दौरान संतश्री अभिलाष साहेब ने कहा कि आदमी अर्थ तो कमा सकता है लेकिन बुद्धि नहीं इसके...

बखानी कबीर की महिमा

इलाहाबाद। कबीर पारख संस्थान में चल रहे तीन दिवसीय वार्षिक उत्सव के दूसरे दिन बृहस्पतिवार को अभिलाष साहेब ने कबीर वाणी की महिमा बखानी। कहा कि कबीर की वाणी में पुरानी और नई पीढ़ी का संगम है। धर्म के क्षेत्र में वह वैज्ञानिक महापुरुष है। इनके संदेशों से सामाजिक सौहार्द और प्रेम झलकता है। बताया कि कबीर की दृष्टि में मानव जाति की सेवा ही ईश्वर की सबसे बड़ी पूजा है। इंसान का पवित्र जीवन भगवान का स्वरूप है। हम सभी को मानव सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए। प्रवचन के बाद ‘आज के संदर्भ में कबीर वाणी की प्रासंगिकता’ पर गोष्ठी की गई। इस मौके पर बनारस, मुंगेर, गुजरात और दिल्ली के कलाकारों ने भजन प्रस्तुत किए। मंत्री देवेंद्र दास ने बताया कि शुक्रवार को समापन नए अनुयायियों को दीक्षा देने के साथ होगा।

सच्च साधक दूसरों की नहीं खुद की गलतियां देखता है

सुख-दुख का कारण बाहर कहीं नहीं है, बल्कि इसका कारण मनुष्य का अपना मन है। मनुष्य बाहरी प्राणी, पदार्थों, नाना विषयों को जानने-समझने का प्रयास करता है, यहां तक वह यह जानना चाहता है कि दूसरे लोग क्या सोचते हैं। किंतु वह अपने मन को जानने-समझने का प्रयास नहीं करता। यदि मनुष्य अपने मन को ठीक से जान-समझ ले और मन के विकारों को दूर कर ले तो जीवन में दुख नहीं रहेगा। कबीर संस्थान नवापारा राजिम में सोमवार से शुरू हुए ध्यान शिविर के प्रथम सत्र में ध्यानार्थी साधकों को संबोधित करते हुए यह बातें संतप्रवर अभिलाष साहेब ने कही। 

उन्होंने कहा कि इसीलिए सद्गुरू कबीर ने साधकों, विवेकियों को संबोधित करते हुए कहा है कि बुझ-बुझ पंडित मन चित लाय। अपने मन को चित लगाकर बुझो-समझो। सच्चा साधक दूसरों की गलतियों को नहीं देखता, किंतु वह अपनी गलतियों को देखता है और उन्हें दूर करने के लिए साधना करता है। संतप्रवर अभिलाष साहेब ने कहा कि जिस प्रकार धुनिया रूई को धुनकर उसके रेशे-रेशे को अलगकर साफ कर देता है, उसी प्रकार साधकों को चाहिए कि वह विवेक-विचार द्वारा अपने मन को धुनकर उसके सारे विकारों को दूर करे। जीवन में कहीं किसी प्रकार का दुख है तो उसका मूल कारण अहंकार कामना ही है। बिना अहंकार कामना के दुख हो नहीं सकता। हर आदमी एक प्रकार से शराब पिए हुए है। बाहर बोतल की जो शराब होती है उसका नशा तो थोडी देर में उतर जाता है, किंतु अहंकार की शराब का जो नशा है वह जिंदगी भर नहीं उतरता। 

इस अहंकार की शराब के नशे के कारण हर आदमी पागल बना हुआ है। उन्होंने कहा कि वह जो नहीं कहना चाहिए वैसी बात कहता है। जो नहीं खाना चाहिए, वह खाता है। पूरे संसार में अहंकार की दावाग्रि लगी है। दुनिया के सभी साधकों ने चाहे वे किसी देशकाल, मत-संप्रदाय के रहे हों, पहले अपने मन को ही देखा-समझा और साधा है। जो अपने मन को देख-समझ लेता है वह कहीं उलझता नहीं। उसके जीवन से सारी उलझन दूर हो जाती है। वह अपना कल्याण तो करती है, बहुतों के लिए आदर्श एवं प्रेरणा स्रोत हो जाता है। जिस किसी को इस जीवन को सही अर्थों में जीना है और परम शांति, परम आनंद का अनुभव करना है उसे चाहिए कि वह ध्यान की गहराई 

आत्मबोध एवं जीवन की निर्मलता

शांति इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह गुरु की शरण में जाकर अपने तन-मन को निर्मल करे। गुरु की कृपा उपदेश के बिना न तो आत्मज्ञान हो सकता है औ न कल्याण का रास्ता मिल सकता है। साधव को चाहिए कि वह निश्छल और निर्मान होकर सबसे प्रियवाणी बोले। 

कटु वाणी बोलने वाले का मन कभी शांत नहीं हो सकता। वह हर समय अंदर जलता रहता है। कटु वाणी, मन की मलिनता, कटुता और अहंकार का सूचक है और जिसका मन मलिन, कटुता अहंकार से भरा है वह साधना कैसे कर सकता है। साधक सभी परिस्थितियों में सम रहे। साधना का फल ही है जीवन में समता आ जाना। बिना सहन किए और समता धारण किए कोई आत्म लाभ नहीं प्राप्त कर सकता। श्री कबीर संस्थान नवापारा राजिम में चल रहे साप्ताहिक ध्यान शिविर में उक्त विचार प्रकट करते हुए संत प्रवर अभिलाष साहेब ने आगे कहा कि संसार में अनेक प्रकार का ज्ञान है और सभी ज्ञान की उपयोगिता एवं आवश्यकता है, किंतु भौतिक क्षेत्र में आदमी चाहे कितना ज्ञानी एवं विद्वान क्यों न हो जाए उससे मन को शांति नहीं मिल सकती। सच्ची शांति तो गुरु ज्ञान से ही मिलती है। गुरु ज्ञान है- आत्मबोध एवं जीवन की निर्मलता। आदमी जितना जानता है उतने आचरण कर ले तो उसका जलता हुआ मन शीलत हो जाए। आदमी के जानने में कमी नहीं है। कमी है उसके आचरण में, करनी में। सद्गुरु कबीर ने कहा जस कथनी तक करनी, जस चुंबक तस ज्ञान। अर्थात जब कथनी के अनुरूप करनी हो जाती है तब ज्ञान चुंबकीय हो जाता है। इसीलिए सच्चे वैराग्यवान, सदाचारी संतों को देख कर आदमी का मन बरबस आकर्षित हो जाता है। कथनी के अनुरूप करनी होने की पहचान है मन में राग द्वेष न होना। हर व्यक्ति को अपना जीवन व्यवहार ऐसा बनाना चाहिए कि शिकवा-शिकायत के लिए जगह न रह जाए। आदमी अपने कर्तव्य को न देखकर दूसरे के कर्तव्य को देखता है। अपने दोषों का त्याग न कर दूसरों के दोषों को देखने लगता है तब उसका मन कटुता एवं शिकायत से भर जाता है। बोधवान, ज्ञानी व्यक्ति के मन में किसी के लिए कोई कटुता-शिकायत नहीं रह जाती। राग-द्वेष मुक्त साधक विनम्र होता है क्योंकि उसके मन में न किसी का अहंकार रहता है और न किसी के लिए कटुता। सद्गुण संपन्न साधक व्यक्ति स्वाभाविक विनम्र होता है।

कबीर पारख संस्थान का32वां वार्षिक अधिवेशन

कबीर को जानने देश भर से जुटे साहेब

Oct 02, 11:38 pm

इलाहाबाद। कबीर पारख संस्थान का32वां वार्षिक अधिवेशन शुक्रवार को कबीर आश्रम प्रीतमनगर में शुरू हुआ। अधिवेशन में देश भर से हजारों की संख्या जुटे साहेब तीन दिनों तक रहकर संत प्रवर कबीर को जानने के साथ ही उनके विचारों को जानेंगे और अपने जीवन में उतारने का प्रयास करेंगे।
अधिवेशन का शुभारम्भ प्रात:काल कबीर वाणी और बीजक पाठ से हुआ जिसमें असम, बिहार और गुजरात के संत शामिल हुए। तत्पश्चात राजस्थान और गुजरात से आये कलाकारों ने कबीर के भजन 'मन मस्त हुआ फिर क्यों बोले' और 'मन लागो मेरो यार फकीरी में' गाकर लोगों को कबीर से जोड़ने का प्रयास किया। इस अवसर पर सदगुरु संत अभिलाष जी ने साहेब को संबोधित करते हुए संत कबीर को सभी जाति व वर्गो का संगम बताया। कहा कि विभिन्न मत, संप्रदाय के लोग अपनी-अपनी पगडंडियों में चलते हैं लेकिन कबीर इन पगडंडियों के संधि बिन्दु पर खडे़ हैं। कबीर के मार्ग को सहज और सरल बताते हुए कहा कि कबीर को जानने के लिए एक ही शर्त है निर्मोहता और निष्पक्षता। उन्होंने कहा कि संत कबीर का परमात्मा बाहर नहीं भीतर है जो तपस्या नहीं साधना से मिलता है। सद्गुरु अभिलाष साहेब ने कहा कि कबीर भारतीय इतिहास के वह महापुरुष हैं जिन्होंने जिन्दगी भर समन्वय और समता की बात की और मृत्यु के बाद भी मिसाल बन गये। संत सजीवन साहेब ने कहा कि व्यवहार को पवित्र किये बिना आध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है। मध्य प्रदेश के संत सनात साहेब, दिल्ली के विचार दास, गुजरात के विवेकदास, असम के अनमोलदास, उड़ीसा के जगन्नाथदास, राजस्थान के दीपकदास, झारखण्ड के दामोदरदास, छत्तीसगढ़ के अमृतदास आदि ने भी विचार व्यक्त किये।
23 राज्यों से जुटे 15 हजार
कबीर आश्रम में शुक्रवार को नजारा बदला हुआ था। आमतौर पर शांत रहने वाले आश्रम में श्वेत वस्त्रधारी हजारों लोग मिनी कुंभ सा दृश्य पैदा कर रहे थे। कबीर पारख संस्थान के 32वें अधिवेशन में देश के 23 राज्यों से पहले दिन लगभग 15 हजार साहेब जुटे। संस्थान के मीडिया प्रभारी गौरव दास ने बताया कि अभी लोगों के आने का सिलसिला जारी है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए स्थाई भवन के साथ सैकड़ों टेंट की व्यवस्था की गयी है।



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सत्संग स्वर्ग का माध्यम

सत्संग स्वर्ग का माध्यम: अभिलाष साहेब




मधेपुरा। मुरलीगंज प्रखंड के नाढ़ी पंचायत अंतर्गत कौशलपुर गांव में सोमवार से तीन दिवसीय सदगुरू कबीर सत्संग समारोह का आयोजन किया गया। सत्संग समारोह में इलाहाबाद से आए परमवीतराग विद्वान प्रवक्ता संत प्रवर श्री अभिलाष साहेब ने अपने मधुर स्वर में प्रवचन करते हुए कहा कि सत्संग सच्चा स्वर्ग का माध्यम है। सत्संग मनुष्य को पशु धरातल से मानवीय धरातल पर खड़ा कर देता है। इंसानियत की जिंदगी जीने को सिखाता है। अभिलाष साहेब ने लोगों को जीने की राह बताते हुए कहा कि ज्ञान, भक्ति और सेवा तीनों की त्रिवेणी में वही व्यक्ति स्नान करता है जो सत्संगी विचारधारा को मानता है। समारोह में मंच से संत श्री धर्मेन्द्र साहेब, उमा साहेब, विवेक साहेब सहित अन्य संतों ने अपने-अपने विचार व्यक्त कर सदगुरु कबीर के संगीतमय भजन का गायन कर समूचे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। भजन को गांधी शर्मा, संतोष कुमार ने गाया। तबला वादक रंधीर कुमार थे। यहां महिला, पुरूष श्रद्धालुओं ने भजन का आनंद उठाया। इस अवसर पर अध्यक्ष निलांबर यादव, उपाध्यक्ष जगदीश दास, सचिव महेंद्र यादव, कोषाध्यक्ष महेश्वर यादव, अंकेक्षक निर्धन यादव, व्यस्था मंत्री सह पंचायत समिति सदस्य रविंद्र यादव, अनूप दास, राजद प्रखंड अध्यक्ष प्रवेश यादव, बेलो के पूर्व मुखिया उमेश यादव, शशी कुमार संतोष कुमार व मुरहो भानू प्रताप मंडल आदि उपस्थित थे। सत्संग समारोह का आयोजन पंचायत वासियों के सहयोग से किया गया है। व्यवस्था में युवा, युवती, महिलाएं व पुरूष सहयोग प्रदान कर रहे हैं। इनका सहयोग सराहनीय रहा।




16 November 2010

साखी

गंगा के कोठे घर करो , नावो नर्मल नीर |
पाया वीना परो मोने तो , कह गया  साहेब कबीर ||

कबीर का घर सोवटे , गला कटीएन के पास |
वो करेगा वो भरेगा , तुम  क्यों  फीरो  उदास ||  

ज्ञान भंडार

जो तू साहे मुझको , छाड़ सकल की आस |
मुझमे  एसो होए रहो हें , सब सुख तेरे पास || बीजक साखी


गंगा के कोठे घर करो , नावो नर्मल नीर |
पाया वीना परो मोने तो , कह गया  साहेब कबीर || 


साहेब के दरबार में, कमी काहू  की नही | बंदे वो पावे नही , सुख साकरी माई | 
साहेब  के दरबार में, अवडी देखि रित | कंटक नर केडा करे, हरिजन मांगे भीख || १
एक हरिजन को सुख दोउ , तो बधाई हरिजन हो जाये | नरक कुंड खाली पड़े , वैकुंठ में  नही  समाई ||