रानीवाड़ा तहसील में कल रात को करीब दो बजे भूकंप के हल्के झटके महसूस किये जब लोग आराम से नींद ले रहे थे तब धरती धुज पड़ी | सभी लोग घरो से बाहर निकल आ गये |
26 जनवरी 2001: == भारत के गुजरात राज्य में रिक्टर स्केल पर 7.9 तीव्रता का एक शक्तिशाली भूकंप आया. इसमें कम से कम तीस हज़ार लोग मारे गए और क़रीब 10 लाख लोग बेघर हो गए. भुज और अहमदाबाद पर भूकंप का सबसे अधिक असर पड़ा था |
भूकंप आज भी ऐसा प्रलय माना जाता है जिसे रोकने या काफी समय पहले सूचना देने की कोई प्रणाली वैग्यानिकों के पास नहीं है। प्रकृति के इस तांडव के आगे सभी बेबश हो जाते हैं। सामने होता है तो बस तबाही का ऐसा मंजर जिससे उबरना आसान नहीं होता है। अभी तो चीन में ही आए भूकंप को देखलीजिए। भरी दुपहरिया में जब लोग या तो अपने काम पर थे या फिर घरों में औरतें-बच्चे अपनी बेफिक्र जिंदगी में आने वाले इस मौत के तांडव से अनजान थे। नहीं पता था कि जिसे वे अपना घर या आशियाना समझ रहे थे वहीं कुछ ही पलों में जिंदा दफ्न होने वाले हैं। थोड़ी ही देर में एक खुशगवार माहौल चीख-पुकार में बदल गया।
जानवरों को मालूम हो जाता है भूकंप
बचपन में बड़े बुजुर्गों से सुना था कि जब भूकंप आने को होता है तो पशु-पक्षी कुछ अजीब हरकतें करने लगते हैं। चूहे अपनी बिलों से बाहर आ जाते हैं। अगर यह सही है तो वैग्यानिक पशु-पक्षियों की इस अद्भुत क्षमता को भूकंप की पूर्व सूचना प्रणाली में क्यों नहीं बदल सकते। अगर ऐसा संभव हो जाए तो प्रकृति की इस तबाही पर विजय पा सकेगा मानव।
25 October 2010
23 October 2010
करवा चौथ
रिश्तों की गरिमा है करवा चौथ
पति की दीर्घायु की कामना
शगुन देने की परंपरा
करवा चौथ का महिलायों को लंबे समय से इंतजार रहता है | जिन लडकियों की पहली करवा चौथ होती है , उनका उत्साह देखते ही बनता है | यह व्रत सुहागिन स्त्रिया पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती है | कही कही इसे 'हरतालिका तीज ' भी कहते है | उद्देश्य एक ही होता है | पुरे दिन निर्जल व्रत रखकर इश्वर से पति परमेश्वर की दीर्घायु की प्रार्थना करती है | अपनी मन पसंद की ड्रेस के साथ- साथ सासु- माँ के लिए भी खरीदारी की जाती है | क्योकि उन्हें भी तो बायेने में शगुन के रूप में कुश देना है | इन पंक्तियों के साथ शगुन के रूप में कुश देना है | इन पंक्तियों के साथ शगुन देना उनकी आत्मा को बड़ा सुख देता है - ' माँ ने तो हमे जन्म दिया, तुमने दिया हमे प्यारा पिया/ सौ सौ साल जियो हमारी सासुजी................' एक दिन पहले स्त्रिया अपने हाथ- पेरो मेहँदी लगाती और लगवाती है |
चौथ माता की पूजा
करवा चौथ व्रत हिंदी महीने के कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चौथ को रखा जाता है | स्त्रिया उस दिन निर्जल व्रत रखती है, पर घर की बड़ी बुजुर्ग महिलाए पहली करवा चौथ के व्रत के दिन ही कथा सुनने के बाद शाम को चार पाँच बजे के करीब चाय पिला देती है, ताकि भविष्य में यदि न रहा जाए तो कोई वहम न रहे | स्त्रिया सुब्ह ही नहाकर पूर्ण श्रंगार कर लेती है | दुल्हन की तरह सज जाती है | पूजा के स्थान को स्वछ कर वहा करवा चौथ का एक चित्र लगा लेती है | अब तो यह चित्र कलेंडर के रूप सब जगह आसानी से मिल जाता है | पर कुश घरो में चावल को पीस कर चावल और गेहू से चौथ माता की आक्रति दीवार पार बनाई जाती है | इसमें सुहाग की सभी वस्तुए जेसे सिंदूर , बिंदी , बिचुया ,कंगा ,शीशा , चूड़ी , महावर आदि बनाते है |
20 October 2010
चन्द्र से बरसेगा अमृत
२२ अक्टूम्बर शरद पूर्णिमा
शरीर के वात- पित्त - कफ के अनुचित सयोजन से असाम्यता आती है | शीतल दुग्ध व चावल इस असाम्यता का उसित मात्रा में सयोजन क्र व्याधियों को दूर भगाता है | इसलिए शरद पूर्णिमा को दुग्ध - खीर चंद्र किरणों में रखी जाती है | ठाकुरजी को भोग लगाकर प्रसाद रूप में सभी को दी जाती है |
आशिवन सुक्ल पूर्णिमा को पूर्ण चंद्र से अमृत वर्षा होती है | इस समय वर्षा ऋतु का समापन हो जाता है | आसमान स्वच्छ व निर्मल होता है |
शरीर के वात- पित्त - कफ के अनुचित सयोजन से असाम्यता आती है | शीतल दुग्ध व चावल इस असाम्यता का उसित मात्रा में सयोजन क्र व्याधियों को दूर भगाता है | इसलिए शरद पूर्णिमा को दुग्ध - खीर चंद्र किरणों में रखी जाती है | ठाकुरजी को भोग लगाकर प्रसाद रूप में सभी को दी जाती है |
आशिवन सुक्ल पूर्णिमा को पूर्ण चंद्र से अमृत वर्षा होती है | इस समय वर्षा ऋतु का समापन हो जाता है | आसमान स्वच्छ व निर्मल होता है |
17 October 2010
शक्ति पर्व विजयादशमी
विजयादशमी का त्योहार वर्षा ऋतू की समाप्ति तथा शरद के आरम्भ में आती है |
भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शोर्य की उपासक है | व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा जाता है |
इस दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन सुभ माना जाता है |
दशहरा सभी लोग धूम-धाम से मनाते है |
असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है |
इस पर्व को भगवती (विजया) के नाम पर विजयादशमी कहते है | साथ ही इस दिन रामचन्द्रजी ने रावण का वध किया था इस लिए इस पर्व को विजयादशमी कहते है |
भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शोर्य की उपासक है | व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा जाता है |
इस दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन सुभ माना जाता है |
दशहरा सभी लोग धूम-धाम से मनाते है |
असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है |
इस पर्व को भगवती (विजया) के नाम पर विजयादशमी कहते है | साथ ही इस दिन रामचन्द्रजी ने रावण का वध किया था इस लिए इस पर्व को विजयादशमी कहते है |
सुख - शांति
सुख - शांति के लिए
सुबह के खाने की प्रथम रोटी गाय और अंतिम रोटी कुत्ते को देने से घर में सुख और शांति आती है | मंत्र-तंत्र-यंत्र
सुबह के खाने की प्रथम रोटी गाय और अंतिम रोटी कुत्ते को देने से घर में सुख और शांति आती है | मंत्र-तंत्र-यंत्र
जयपुर का जंतर मंतर विश्व धरोहर
जयपुर के जंतर मंतर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया है.
जयपुर का जंतर मंतर देखने हर साल सात लाख सैलानी आते हैं.
इस वेधशाला का निर्माण जयपुर के तत्कालीन राजा सवाई जयसिंह ने 1734 में करवाया था. उनकी ज्योतिष और पारंपरिक वेध विज्ञान में गहरी रूचि थी.
राजा जयसिंह ने समरकंद के तत्कालीन शासक उलूग बेग के हाथों बनाई गई वेधशाला से प्रेरणा ली और भारत में वेधशालाओ का निर्माण करवाया.
पहली वेध शाला 1724 में दिल्ली में बनी. इसके 10 वर्ष बाद जयपुर में जंतर मंतर का निर्माण हुआ. इसके 15 वर्ष बाद मथुरा, उज्जैन और बनारस में भी ऐसी ही वेधशालाएं खड़ी की गईं जो आज भी गुज़रे ज़माने के असीम ज्योतिष ज्ञान की गवाही
लेकिन इनमें सबसे बड़ी और विशाल जयपुर की वेध शाला ही है. इसका रखरखाव भी दूसरों से बेहतर है.
राजा जय सिंह के हाथों जंतर मंतर में खड़े किये गए यंत्रों में सम्राट, जयप्रकाश और राम यंत्र भी हैं.
इनमें सम्राट सबसे ऊँचा है और ये इसके नाम से भी ध्वनित होता है.
जंतर मंतर में बने ये यंत्र पत्थर और चूने से बने हैं. ये आज भी न केवल सलामत हैं बल्कि ज्योतिषी आज भी हर साल इन यंत्रों के माध्यम से वर्षा की थाह लेते हैं और मौसम का अंदाज़ा लगाते हैं.
जंतर मंतर का सम्राट यंत्र कोई एक सौ चवालीस फुट ऊँचा है. इस यंत्र की ऊँची चोटी आकाशीय ध्रुव को इंगित करती है.
इसकी दीवार पर समय बताने के निशान हैं जो आज भी सटीक हैं और इससे घंटे, मिनट और चौथाई मिनट को पढ़ा जा सकता है.
इससे पहले राजस्थान में भरतपुर के केवल देव राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य को विश्व धरोहर का दर्जा मिला था.
जयपुर का जंतर मंतर देखने हर साल सात लाख सैलानी आते हैं.
इस वेधशाला का निर्माण जयपुर के तत्कालीन राजा सवाई जयसिंह ने 1734 में करवाया था. उनकी ज्योतिष और पारंपरिक वेध विज्ञान में गहरी रूचि थी.
राजा जयसिंह ने समरकंद के तत्कालीन शासक उलूग बेग के हाथों बनाई गई वेधशाला से प्रेरणा ली और भारत में वेधशालाओ का निर्माण करवाया.
पहली वेध शाला 1724 में दिल्ली में बनी. इसके 10 वर्ष बाद जयपुर में जंतर मंतर का निर्माण हुआ. इसके 15 वर्ष बाद मथुरा, उज्जैन और बनारस में भी ऐसी ही वेधशालाएं खड़ी की गईं जो आज भी गुज़रे ज़माने के असीम ज्योतिष ज्ञान की गवाही
लेकिन इनमें सबसे बड़ी और विशाल जयपुर की वेध शाला ही है. इसका रखरखाव भी दूसरों से बेहतर है.
राजा जय सिंह के हाथों जंतर मंतर में खड़े किये गए यंत्रों में सम्राट, जयप्रकाश और राम यंत्र भी हैं.
इनमें सम्राट सबसे ऊँचा है और ये इसके नाम से भी ध्वनित होता है.
जंतर मंतर में बने ये यंत्र पत्थर और चूने से बने हैं. ये आज भी न केवल सलामत हैं बल्कि ज्योतिषी आज भी हर साल इन यंत्रों के माध्यम से वर्षा की थाह लेते हैं और मौसम का अंदाज़ा लगाते हैं.
जंतर मंतर का सम्राट यंत्र कोई एक सौ चवालीस फुट ऊँचा है. इस यंत्र की ऊँची चोटी आकाशीय ध्रुव को इंगित करती है.
इसकी दीवार पर समय बताने के निशान हैं जो आज भी सटीक हैं और इससे घंटे, मिनट और चौथाई मिनट को पढ़ा जा सकता है.
इससे पहले राजस्थान में भरतपुर के केवल देव राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य को विश्व धरोहर का दर्जा मिला था.
15 October 2010
दिल्ली ने कहा अलविदा,अब ग्लास्गो की बारी
19वें राष्ट्रमंडल खेल: पदक तालिका
देश | स्वर्ण | रजत | काँस्य |
---|---|---|---|
1 ऑस्ट्रेलिया | 74 | 55 | 48 |
2 भारत | 38 | 27 | 36 |
3 इंग्लैंड | 37 | 59 | 46 |
4 कनाडा | 26 | 17 | 32 |
5 दक्षिण अफ़्रीका | 12 | 11 | 10 |
6 कीनिया | 12 | 11 | 9 |
गीत,संगीत और बेहतरीन कला प्रदर्शन के बीच दिल्ली ने राष्ट्रमंडल खेलों से विदा लेते हुए ध्वज ग्लास्गो को सौंप दिया. नेहरू स्टेडियम में हुए रंगारंग समापन समारोह के दौरान कलमाड़ी ने कहा ये भारत का 'चक दे पल' है.
भारत दूसरे स्थान पर
साइना के स्वर्ण पदक की बदौलत भारत ने खेलों में 38 स्वर्ण पदक के साथ पदक तालिका में दूसरा स्थान हासिल किया है.
14 October 2010
मीरा बाई के पद
दरद न जाण्यां कोय
हेरी म्हां दरदे दिवाणी म्हारां दरद न जाण्यां कोय।
घायल री गत घाइल जाण्यां, हिवडो अगण संजोय।
जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्यां जिण खोय।
दरद की मार्यां दर दर डोल्यां बैद मिल्या नहिं कोय।
मीरा री प्रभु पीर मिटांगां जब बैद सांवरो होय॥
#
अब तो हरि नाम लौ लागी
सब जग को यह माखनचोर, नाम धर्यो बैरागी।
कहं छोडी वह मोहन मुरली, कहं छोडि सब गोपी।
मूंड मुंडाई डोरी कहं बांधी, माथे मोहन टोपी।
मातु जसुमति माखन कारन, बांध्यो जाको पांव।
स्याम किशोर भये नव गोरा, चैतन्य तांको नांव।
पीताम्बर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।
दास भक्त की दासी मीरा, रसना कृष्ण रटे॥
#
राम रतन धन पायो
पायो जी म्हे तो रामरतन धन पायो।
बस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा को अपणायो।
जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढत सवायो।
सत की नाव खेवहिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।
मीरा के प्रभु गिरधरनागर, हरख-हरख जस पायो॥
#
हरि बिन कछू न सुहावै
परम सनेही राम की नीति ओलूंरी आवै।
राम म्हारे हम हैं राम के, हरि बिन कछू न सुहावै।
आवण कह गए अजहुं न आये, जिवडा अति उकलावै।
तुम दरसण की आस रमैया, कब हरि दरस दिलावै।
चरण कंवल की लगनि लगी नित, बिन दरसण दुख पावै।
मीरा कूं प्रभु दरसण दीज्यौ, आंणद बरण्यूं न जावै॥
#
झूठी जगमग जोति
आवो सहेल्या रली करां हे, पर घर गावण निवारि।
झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति।
झूठा सब आभूषण री, सांचि पियाजी री पोति।
झूठा पाट पटंबरारे, झूठा दिखणी चीर।
सांची पियाजी री गूदडी, जामे निरमल रहे सरीर।
छप्प भोग बुहाई दे है, इन भोगिन में दाग।
लूण अलूणो ही भलो है, अपणो पियाजी को साग।
देखि बिराणै निवांण कूं हे, क्यूं उपजावै खीज।
कालर अपणो ही भलो है, जामें निपजै चीज।
छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ।
ताके संग सीधारतां हे, भला न कहसी कोइ।
वर हीणों आपणों भलो हे, कोढी कुष्टि कोइ।
जाके संग सीधारतां है, भला कहै सब लोइ।
अबिनासी सूं बालवां हे, जिपसूं सांची प्रीत।
मीरा कूं प्रभु मिल्या हे, ऐहि भगति की रीत॥
#
अब तो मेरा राम
अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।
साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
सतं देख दौड आई, जगत देख रोई।
प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
मारग में तारग मिले, संत राम दोई।
संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥
अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई।
राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥
अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
दास मीरा लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥
#
म्हारे तो गिरधर गोपाल
म्हारे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर मोर मुगट मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
छाँडि दई कुद्दकि कानि कहा करिहै कोई॥
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
चुनरीके किये टूक ओढ लीन्हीं लोई।
मोती मूँगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन जू सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई॥
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥
हेरी म्हां दरदे दिवाणी म्हारां दरद न जाण्यां कोय।
घायल री गत घाइल जाण्यां, हिवडो अगण संजोय।
जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्यां जिण खोय।
दरद की मार्यां दर दर डोल्यां बैद मिल्या नहिं कोय।
मीरा री प्रभु पीर मिटांगां जब बैद सांवरो होय॥
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अब तो हरि नाम लौ लागी
सब जग को यह माखनचोर, नाम धर्यो बैरागी।
कहं छोडी वह मोहन मुरली, कहं छोडि सब गोपी।
मूंड मुंडाई डोरी कहं बांधी, माथे मोहन टोपी।
मातु जसुमति माखन कारन, बांध्यो जाको पांव।
स्याम किशोर भये नव गोरा, चैतन्य तांको नांव।
पीताम्बर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।
दास भक्त की दासी मीरा, रसना कृष्ण रटे॥
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राम रतन धन पायो
पायो जी म्हे तो रामरतन धन पायो।
बस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा को अपणायो।
जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढत सवायो।
सत की नाव खेवहिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।
मीरा के प्रभु गिरधरनागर, हरख-हरख जस पायो॥
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हरि बिन कछू न सुहावै
परम सनेही राम की नीति ओलूंरी आवै।
राम म्हारे हम हैं राम के, हरि बिन कछू न सुहावै।
आवण कह गए अजहुं न आये, जिवडा अति उकलावै।
तुम दरसण की आस रमैया, कब हरि दरस दिलावै।
चरण कंवल की लगनि लगी नित, बिन दरसण दुख पावै।
मीरा कूं प्रभु दरसण दीज्यौ, आंणद बरण्यूं न जावै॥
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झूठी जगमग जोति
आवो सहेल्या रली करां हे, पर घर गावण निवारि।
झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति।
झूठा सब आभूषण री, सांचि पियाजी री पोति।
झूठा पाट पटंबरारे, झूठा दिखणी चीर।
सांची पियाजी री गूदडी, जामे निरमल रहे सरीर।
छप्प भोग बुहाई दे है, इन भोगिन में दाग।
लूण अलूणो ही भलो है, अपणो पियाजी को साग।
देखि बिराणै निवांण कूं हे, क्यूं उपजावै खीज।
कालर अपणो ही भलो है, जामें निपजै चीज।
छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ।
ताके संग सीधारतां हे, भला न कहसी कोइ।
वर हीणों आपणों भलो हे, कोढी कुष्टि कोइ।
जाके संग सीधारतां है, भला कहै सब लोइ।
अबिनासी सूं बालवां हे, जिपसूं सांची प्रीत।
मीरा कूं प्रभु मिल्या हे, ऐहि भगति की रीत॥
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अब तो मेरा राम
अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।
साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
सतं देख दौड आई, जगत देख रोई।
प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
मारग में तारग मिले, संत राम दोई।
संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥
अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई।
राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥
अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
दास मीरा लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥
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म्हारे तो गिरधर गोपाल
म्हारे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर मोर मुगट मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
छाँडि दई कुद्दकि कानि कहा करिहै कोई॥
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
चुनरीके किये टूक ओढ लीन्हीं लोई।
मोती मूँगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन जू सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई॥
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥
कबीर साहेब के कुंडलियां
माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेर
कर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेर
मन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी माला
धरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वाला
कहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरी
धर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो
#
आया है किस काम को किया कौन सा काम
भूल गए भगवान को कमा रहे धनधाम
कमा रहे धनधाम रोज उठ करत लबारी
झूठ कपट कर जोड़ बने तुम माया धारी
कहते दास कबीर साहब की सुरत बिसारी
मालिक के दरबार मिलै तुमको दुख भारी
#
चलती चाकी देखि के दिया कबीरा रोय
दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय
साबित बचा न कोय लंका को रावण पीसो
जिसके थे दस शीश पीस डाले भुज बीसो
कहिते दास कबीर बचो न कोई तपधारी
जिन्दा बचे ना कोय पीस डाले संसारी
#
कबिरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
ना काहू से बैर ज्ञान की अलख जगावे
भूला भटका जो होय राह ताही बतलावे
बीच सड़क के मांहि झूठ को फोड़े भंडा
बिन पैसे बिन दाम ज्ञान का मारै डंडा
कर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेर
मन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी माला
धरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वाला
कहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरी
धर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो
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आया है किस काम को किया कौन सा काम
भूल गए भगवान को कमा रहे धनधाम
कमा रहे धनधाम रोज उठ करत लबारी
झूठ कपट कर जोड़ बने तुम माया धारी
कहते दास कबीर साहब की सुरत बिसारी
मालिक के दरबार मिलै तुमको दुख भारी
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चलती चाकी देखि के दिया कबीरा रोय
दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय
साबित बचा न कोय लंका को रावण पीसो
जिसके थे दस शीश पीस डाले भुज बीसो
कहिते दास कबीर बचो न कोई तपधारी
जिन्दा बचे ना कोय पीस डाले संसारी
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कबिरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
ना काहू से बैर ज्ञान की अलख जगावे
भूला भटका जो होय राह ताही बतलावे
बीच सड़क के मांहि झूठ को फोड़े भंडा
बिन पैसे बिन दाम ज्ञान का मारै डंडा
कबीर साहेब के दोहे
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥
जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय ।
यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय ॥
जहाँ काम तहाँ नाम नहिं, जहाँ नाम नहिं वहाँ काम ।
दोनों कबहूँ नहिं मिले, रवि रजनी इक धाम ॥
कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय ।
भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय ॥
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥
जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय ।
यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय ॥
जहाँ काम तहाँ नाम नहिं, जहाँ नाम नहिं वहाँ काम ।
दोनों कबहूँ नहिं मिले, रवि रजनी इक धाम ॥
कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय ।
भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय ॥
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥
महिलाओं को आता है कम पसीना
‘मर्द पसीना बहाते हैं, जबकि महिलाएँ दमकती हैं’ ये पुरानी कहावत जापान के एक शोध में एक बार फिर सही साबित हुई है.
ताज़ा शोध में पाया गया है कि औरतों के मुकाबले मर्दों को ज्यादा पसीना आता है.इसका मतलब ये हुआ कि औरतों को गर्मी में ज्यादा तकलीफ़ होती है क्योंकि जिस्म से पसीना निकलने से गर्मी सहन करने में मदद मिलती है.
ब्रिटेन के एक विशेषज्ञ का कहना है कि महिलाओं के शरीर में तरलता कम होती है इसीलिए उन्हें मर्दों के मुक़ाबले कम पसीना आता है.
शोधर्कताओं ने 37 लोगों को नियंत्रित वातावरण में घंटे भर लगातार साइकिल चलाने को कहा जिसमें बीच बीच में कुछ समय के लिए गति और तेज़ करनी थी.
शोध में शामिल किए लोगों को चार श्रेणी में बाँटा गया था–प्रशिक्षित-अप्रशिक्षित महिलाएँ और प्रशिक्षित-अप्रशिक्षित पुरूष.
व्यायाम के दौरान इनके बदन से निकले पसीने को मापा गया जिसमें दोनों का अंतर स्पष्ट हो गया.
कॉमनवेल्थ खेल 2010
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल 2010
11 अक्तूबर (आठवाँ दिन)
स्वर्ण पदक- महिलाओं की डिस्कस थ्रो में कृष्णा पूनिया को स्वर्ण पदक |52 साल बाद मिला एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक |
61.51 मीटर दूर तक फेकी डिस्क कृष्णा पूनिया ने |
राजस्थान सरकार ने की १० लाख देने की घोषणा |
चुरू जिले के सादुलपुर के गागडवास गाँव की बहु |
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का 618 खिलाड़ियों और अधिकारियों का दल है. मेलबर्न में भारत ने कुल 50 पदक जीते थे और चौथे स्थान पर रहा था.
13 October 2010
युग पुरुष कबीर
' मै कहता आंखिन की देखि ' की क्रांतिकारी बात कहने वाले कबीर की वाणी आज भी समाज की विषमताओ के बिच समता का संदेश देती है |
कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाटी हाथ जो घर जारै आपना चले हमारे साथ | यह बात कहने वाले कबीर आज भी उतने ही प्रांसगिक है जितने वे अपने जमाने में थे | कबीर युग पुरुष थे | युग पुरुष वही होता है जिसकी सोच युग के विपरीत होती है | इसलिए कबीर ना काहू से दोस्ती ना काहू से वैर की बात कहते है | कबीर स्वेदनशील तो है लेकिन सुकोमल नही है | वाई साँच को भी आँच पर तपा कर देखते है |
कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाटी हाथ जो घर जारै आपना चले हमारे साथ | यह बात कहने वाले कबीर आज भी उतने ही प्रांसगिक है जितने वे अपने जमाने में थे | कबीर युग पुरुष थे | युग पुरुष वही होता है जिसकी सोच युग के विपरीत होती है | इसलिए कबीर ना काहू से दोस्ती ना काहू से वैर की बात कहते है | कबीर स्वेदनशील तो है लेकिन सुकोमल नही है | वाई साँच को भी आँच पर तपा कर देखते है |
12 October 2010
चामुंडा माता
जालोर जिले के आहोर कस्बे में सिथ्त चामुंडा माताजी का मंदिर जन- जन कि आस्था का केंद्र है | यहा राजस्थान से बाहर के श्रद्धालु भी दर्शनों के लिए आते है |
सर सुंधा, धड़ कोटडा, पगला पिछोला री पाल |
आपो आप विराजो आहोर में, गले फूलो री माल ||
अर्थात माँ चामुंडा का सिर सुंधा पर्वत (भीनमाल), धड़ कोटड़ा, पैर पिसोला कि पाल पर सिथ्त है | जबकि स्वयं आहोर नगर में विराजित है | माँ चामुंडा कि कलात्मक मंदिर आहोर के अंतिम छोर पर एकांत में बना हुआ है | मंदिर कि स्थापना ४०० वर्ष पूर्व कि बताई जाती है | किवंदती है कि यहा के तत्कालीन ठाकुर को माँ चामुंडा ने स्वप्न में स्वयं के प्रकट होने कि बात बताते हुए कहा था कि मेरी प्रतिमा प्रकट होगी | उसे वहा बैलगाड़ी में रख गाजे-बाजों के साथ प्रस्थान करना और जहा बैलगाड़ी स्वत: रुक जाए वही उसे स्थापित करवा देना | इसके दुसरे ही दिन गाँव के डाकिनाडा तालाब में मिट्टी खोद रहे एक कुम्हार का फावड़ा किसी पत्थर से टकराया | उसने खुदाई कि तो माता कि मूर्ति निकली | लोगों की मान्यता है की फावड़े के प्रहार के कारण माताजी की गर्दन झुक गई जो आज भी वैसे ही है | बाद में मूर्ति को बैलगाड़ी में विराजित कर गाजे-बाजों के साथ यात्रा निकाली | वर्तमान मन्दिर के स्थान पर बैल स्वत: रुक गये तो उसे वही स्थापित कर दी गई | आज वहा भव्य मन्दिर बना हुआ है | माता की मूर्ति के आगे चांदी का विशाल सिंह स्थापित है | नवरात्रि में माँ के दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते है |
सर सुंधा, धड़ कोटडा, पगला पिछोला री पाल |
आपो आप विराजो आहोर में, गले फूलो री माल ||
अर्थात माँ चामुंडा का सिर सुंधा पर्वत (भीनमाल), धड़ कोटड़ा, पैर पिसोला कि पाल पर सिथ्त है | जबकि स्वयं आहोर नगर में विराजित है | माँ चामुंडा कि कलात्मक मंदिर आहोर के अंतिम छोर पर एकांत में बना हुआ है | मंदिर कि स्थापना ४०० वर्ष पूर्व कि बताई जाती है | किवंदती है कि यहा के तत्कालीन ठाकुर को माँ चामुंडा ने स्वप्न में स्वयं के प्रकट होने कि बात बताते हुए कहा था कि मेरी प्रतिमा प्रकट होगी | उसे वहा बैलगाड़ी में रख गाजे-बाजों के साथ प्रस्थान करना और जहा बैलगाड़ी स्वत: रुक जाए वही उसे स्थापित करवा देना | इसके दुसरे ही दिन गाँव के डाकिनाडा तालाब में मिट्टी खोद रहे एक कुम्हार का फावड़ा किसी पत्थर से टकराया | उसने खुदाई कि तो माता कि मूर्ति निकली | लोगों की मान्यता है की फावड़े के प्रहार के कारण माताजी की गर्दन झुक गई जो आज भी वैसे ही है | बाद में मूर्ति को बैलगाड़ी में विराजित कर गाजे-बाजों के साथ यात्रा निकाली | वर्तमान मन्दिर के स्थान पर बैल स्वत: रुक गये तो उसे वही स्थापित कर दी गई | आज वहा भव्य मन्दिर बना हुआ है | माता की मूर्ति के आगे चांदी का विशाल सिंह स्थापित है | नवरात्रि में माँ के दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते है |
11 October 2010
ज्ञान भंडार
पवित्रता,आत्मा का संतुलन है |
सब्द संभाल के बोलिए शब्द के हाथ न पाव |
पढोगे-लिखोगे बनोगे नवाब और गलत संगती करोगे तो बनोगे ख़राब |
खाली दिमाग शेतान का घर |
कितनी खुबसूरत यह तस्वीर है यह कश्मीर है |
जाको राखे साईया मर सके न कोई |
सब्द संभाल के बोलिए शब्द के हाथ न पाव |
पढोगे-लिखोगे बनोगे नवाब और गलत संगती करोगे तो बनोगे ख़राब |
खाली दिमाग शेतान का घर |
कितनी खुबसूरत यह तस्वीर है यह कश्मीर है |
जाको राखे साईया मर सके न कोई |
बरसात
बरसा सावन
देखा नही केवल सुना था सावन भी ऐसे आता हें,
घिर घिर बद्र आते थे, बिन बरसे लोट ये जाते थे |
प्यासी धरा, प्यासी ही रह जाती थी |
मन का मयूर नाच उठने को, तडफ तडफ रह जाता था |
धरती का बेटा, नभ को देख लहू के आसू पीता था |
लेकिन अबके 'सावन' विशेस आया है |
इन्द्रदेव ने असीम प्यार बरसाया है |
धरती ने मंगल गीत गया है,
सबने सावनोत्सव खूब मनाया है |
आओ मिलकर संकल्प करे,
भूल हमे नही जाना है,
इस स्नेह - जल को व्यर्थ नही गवाना है |
संचित कर इसको मरुधरा को हर-भरा
और स्वर्ग सम बनाना है |
10 October 2010
पूजा
पूजा के दोरान देवी को गुलाब या कनेर का लाल पुष्प अर्पित करना चाहिए | मान्यता हें कि देवी माँ को लाल पुष्प चढाने से इछा-शक्ति द्रढ़ होती हें और मनोकामनाऍ पूर्ण होती है | सास्त्रो के अनुसार- स्त्रुओ के मर्दन के समय रक्त के कारण देवी का शरीर लाल हो गया था और विजय पाकर वे बहूत प्रसन्न थी, तभी से लाल रंग को माता कि प्रसन्नता का प्रतीक मान लिया गया और उन्हें लाल रंग कि वस्तुए चढ़ाने कि परम्परा बन गई | इसमें वस्त्र,सिंदूर आदि शामिल हें |
कन्या पूजन
नवरात्रि में कन्याओ का पूजन विशेष महत्व रखता है | कन्या को देवी का रूप मानकर उनका पूजन किया जाता है | सास्त्रो के अनुसार - एक कन्या की पूजा से एश्वर्य की, दो की पूजा से भोग और मोक्ष की,तीन की पूजा से धर्म, अर्थ एवं काम की, चार की पूजा से राज्यपद की, पाँच की पुँजा से विधा की, छह की पूजा से शटकर्मसिद्धी, सात की पूजा से राज्य की, आठ की पूजा से सम्पदा की और नौ कन्याओं के पूजन से प्रभुत्व की प्राप्ति होना माना जाता है | कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओ का पूजन निहित है | दो साल तक की कन्या कुमारी, तीन साल की त्रिमूर्तिनी, चार की कल्याणी, पाँच साल की रोहिणी, छह साल की काली, सात साल की चण्डिका, आठ साल की शम्भवी, नौ साल की दुर्गा एवं दस साल की सुभद्रा स्वरुपा मानी जाती है | ध्यान रहे कि दस साल से अधिक
की कन्याओ का पूजन विधान नही है |
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